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सम्पादकीय : 'शान्ति सुमन की गीत-रचना और दृष्टि'
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शान्ति सुमन की गीत-रचना और दृष्टि
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डाॅ॰ अंजना वर्मा
लोक जीवन के संस्कार
आज के संदर्भ में महानगरीय इन्द्रियबोध से उपजी कविताओं में जीवन का राग टूट सा रहा है और उस परिवेश में कवि-कर्म भी कठिन होता जा रहा है। ऐसे बिखरते हुए समय में जिन कवियों में लोकजीवन के संस्कार हैं वे सृजनशीलता को ऊर्जा प्रदान कर रहे हैं। यही तत्व शान्ति सुमन के गीतों को भी प्राणवान और सजल बनाये हुए है। उनके गीतकार का यह इन्द्रिय बोध अप्रस्तुतों, प्रतीकों और बिम्बों के रूपों में उनके रचना-संसार में दिखाई देता है जिसमें प्राकृतिक उपादान विशेष भूमिका अदा करते हैं।