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सम्पादकीय : 'शान्ति सुमन की गीत-रचना और दृष्टि'
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शान्ति सुमन की गीत-रचना और दृष्टि
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डाॅ॰ चेतना वर्मा
लय-सौन्दर्य से भरे शब्द-गठन, भाषा की अनुकूलता
'परछाई टूटती' के इस गीत 'दुख रही है अब नदी के देह बादल लौट आ' – में कई पाठकों-समीक्षकों ने रूमानियत देखी, पर इस गीत की रचयित्री से मैंने जाना कि लगातार विपर्जय को जीते हूए मन ही कहाँ मन रह जाता है। वह देह हो जाता है। दीखने लगती हैं उसकी पीड़ायें, वे निशान जो समय लगाते हैं। किसान-जीेवन के वे परिताप इसमें व्यक्त हुए हैं जो बादल के बरसने से ही धरती अन्नमयी होती है।...
शान्ति सुमन के गीतों के संसार में गीतों की पृषठभूमि और संगति देते हुए उनके लय-सौन्दर्य से भरे शब्द-गठन, भाषा की अनुकूलता, श्रमिक वर्ग की स्त्रियों के पहनावे, गहने और सौन्दर्य के अन्य उपकरण भी देखने योग्य हैं। कभी तो पसीने भी इनके लिये जेवर बन जाते हैं।