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सम्पादकीय : 'शान्ति सुमन की गीत-रचना और दृष्टि'
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शान्ति सुमन की गीत-रचना और दृष्टि
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शान्ति सुमन की गीत-रचना और दृष्टि
शान्ति सुमन की गीत-रचना और दृष्टि
शान्ति सुमन की गीत-रचना और दृष्टि
डाॅ॰ मधुसूदन साहा
लोकगीतात्मक सौन्दर्य
लोकगीतात्मक सौन्दर्य और लोरी की कोमलता लिए उनके (शान्ति सुमन के) अनेक गीत हैं, जिनमें सहज बिम्बों के कुशल प्रयोग देखने लायक हैं। नये-नये बिम्बों और प्रतीकों की तलाश तो वे अवश्य ही करती हैं, किन्तु उनकी दृष्टि अपने आस-पास बिखरी हुई जिन्दगी पर जाती हैं। वे अपने आंगन, चौबारे, कोठे, दलान, पोखर, बथान, खेत-खलिहान आदि से बिम्बों तथा प्रतीकों पलकों की बरौनियों से पकड़-पकड़कर उठाती हैं और अपने गीतों में पिरोकर जीवन्त बना देती हैं-
कहीं-कहीं दुखती है घर की / छोटी आमदनी
धुँआ पहनते चौके / बुनते केवल नागफनी
मिट्टी के प्याले सी दरकी / उमर हुई गुमनाम
रोजमर्रे की जिन्दगी को उसी के मुहावरे में अभिव्यक्त करने में शान्ति सुमन को जितनी महारत हासिल है, उतनी बहुत कम रचनाकारों को है।