डाॅ॰ रेवतीरमण
नागार्जुन की कविता को अमरता देनेवाले मैथिल संस्कृति के उपकरण शान्ति सुमन के गीतों में भी सक्रिय
शन्ति सुमन राग और रूप ही लिखती रहीं, विराग और अरूप ने कभी उन्हें आकर्षित नहीं किया तो उसके पीछे उनकी गतिशील यथार्थ की समझ और विकासशील वैज्ञानिक अन्तर्दृष्टि है । मिथिला की जनपदीय लोक चेतना और गेय संस्कार उनके गीतों में 'स्व-भाव' की तरह शुरू से ही विन्यस्त रहे हैं । उनमें माँ की लोरी और पहरुए की प्रभाती गेय रूप में सहज और प्रभाव के स्तर पर अक्सर अचूक रही है । कहीं-कहीं उत्सवधर्मी आयोजनों की स्नेहिल सामाजिकता भी । उनकी तीर की तरह नुकीली, अचूक गीति-प्रतिभा शुरू में अत्यंत चमकदार थी, आज भी है जिसका रचनात्मक विन्यास 'नवगीत' से लगाकर 'जनगीत' और 'जनवादी' गीत का परचम लहराने के लिए किया गया ।
बहरहाल मैं मानता हूँ कि शान्ति सुमन के भीतर गीत की संवेदना निश्छल है, अमिश्रित । उनके भावावेश अलंकृत नहीं, स्वभावजन्य हैं । वे गीत रचने और उनकी सम्यक प्रस्तुति के लिए ही बनी हैं । संभव है, जन-आन्दोलनों का पीछा करने की प्रेरणा उन्हें उद्दाम युग चेतना से मिली हो ।
शान्ति सुमन छायावाद की महीयसी महादेवी से न मुठभेड़ करती हैं और न उनके चरण-चिन्हों का अनुसरण ही, पर कोई चाहे तो सुभद्रा कुमारी चौहान की अगली कड़ी के रूप में उनकी जन-सम्बद्धता परख सकता है । खास बात यह है कि उनके गीतकार की जड़ें मिथिला में हैं । उनके गीतों में जयदेव भी हेैंं, विद्यापति और शुरूआती दौड़ के नागार्जुन भी । महादेवी के प्रगीत कल्पना-समृद्ध हैं, वे कलागीत के शिखर हैं, परन्तु उनका कोई जनपदीय आधार नहीं है । उनमें जैसे कोई मनोरम स्त्री शरीर नहीं, वैसे ही उनका कोई व्यवस्थित भूगोल भी नहीं, हर साँस का इतिहास लिखने के दावे के बावजूद । जबकि शान्ति सुमन के गीतों में मिथिला को गंभीर रचनात्मक प्रतिनिधित्व मिला है । मैथिल संस्कृति के वे सारे उपकरण जो नागार्जुन की कविता को अमरता देनेवाले हैं, बड़े शालीन तरीके से शान्ति सुमन के गीतों में भी सक्रिय हैं ।