डाॅ॰ वशिष्ठ अनूप
महाश्वेता देवी के कथा-साहित्य के केन्द्र में आदिवासी सामज की तरह शान्ति सुमन के गीतों के केन्द्र में बिहार के किसान-मजदूर
डाॅ॰ शान्ति सुमन एक ऐसी कवयित्री हैं जिन्होंने स्वतःस्फूर्त भावुकता को काव्य का विषय न बनाकर जीवन की मूलभूत समस्याओं और शोषक-शोषित वर्ग के बीच के टकरावों एवं संघर्षों को अपने गीतों में अभिव्यक्ति दी है । उन्होंने नवगीत से लेकर जनगीत और जनवादी गीत तक की सार्थक और महत्वपूर्ण काव्य-यात्रा की है । आरंभिक दौर में लिखे गये उनके नवगीत भी सीमाओं का अतिक्रमण करते रहे ।
शांति सुमन ने समाज, साहित्य, गीत, लय, छंद, भाषा, बिम्ब, प्रतीक, विचार और कला आदि पर गंभीरता से चिंतन किया है | वह ढुलमुल रचनाकारों की भाँति साहित्य में राजनीतिं का विरोध नहीं करतीं, किन्तु राजनीतिक विचारों की कलात्मक अभिव्यक्ति को जरूर मानती हैं |
जिस प्रकार महाश्वेता देवी के कथा साहित्य का केंद्रीय विषय आदिवासी समाज है, उसी प्रकार शांति सुमन के गीतों के केंद्र में बिहार के किसान-मजदूर और विशेषकर खेतिहर-मजदूर हैं | ये वे मजदूर हैं जो दिन-रात अपना खून-पसीना बहाकर धरती को उर्वर बनाते है और अन्न उगाते हैं, किन्तु स्वयं अन्न के एक-एक दाने के लिए तरसते-तड़पते हैं, जिनके रोटी, कपड़ा और झोपड़ी के सपने भी सपने ही रह जाते हैं |