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सम्पादकीय : 'शान्ति सुमन की गीत-रचना और दृष्टि'

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डाॅ॰ महाश्वेता चतुर्वेदी

शान्ति सुमन की गीत-रचना और दृष्टि

शान्ति सुमन की गीत-रचना और दृष्टि

शान्ति सुमन की गीत-रचना और दृष्टि

शान्ति सुमन की गीत-रचना और दृष्टि

शान्ति सुमन की गीत-रचना और दृष्टि

शान्ति सुमन की गीत-रचना और दृष्टि

शान्ति सुमन की गीत-रचना और दृष्टि

डाॅ॰ विश्वनाथ प्रसाद

समकालीन जिन्दगी के संवेदनशील क्षणों के दस्तावेज

              शान्ति सुमन के ये गीत केवल नवइयत की तलाश के लिये नहीं लिखे गये हैं, बल्कि ये मध्यवर्ग की समकालीन जिन्दगी के संवेदनशील क्षणों के दस्तावेज हैं ।....

              शान्ति सुमन के 'ओ प्रतीक्षित' को पढ़ने के बाद नवगीत का वह पक्ष उभरता है जो नयी संवेदनाओं को बतौर हिस्सेदारी के इस तरह लयबद्ध करता है कि वह व्यापक मानव-बोध का साफ-सुथरा आईना बन सके ।.... शान्ति सुमन ने आज की जिन्दगी के बाहरी दबाव और अन्दरूनी उलझनों की घेरेबन्दी से जब-तब अपने को मुक्त पाया है । जीवन के प्रति उनका जितना भी है, बहुत साफ और सुलझा हुआ विचार है ।

              शान्ति सुमन के गीतों में भावात्मकता बराबर अनाहत रूप से विद्यमान मिलती है, किन्तु उनकी भावुकता में एक ओर निर्बाध मुक्तावस्था है तो दूसरी ओर पीड़ा और घुटन । वे प्रतिदिन के दबावों से मिले हुए दर्द को यथार्थ की सतह पर झेलती हैं, किन्तु लय-संधान में भावात्मकता सघन हो जाती है । पुराना गीतकार किसी भावुक क्षण को पकड़कर अपनी पूरी भावात्मकता के साथ गीत की रचना किया करता था । गीत-विद्ध क्षण में यथार्थ से वह कोसों दूर रहता था । असीम भावुकता और तदनुकूल अबाध कल्पना गीत की शर्त हुआ करती थी, किन्तु नवगीतकार अपने गीतों को जीवन की कड़ुवी और मीठी सच्चाइयों का हिस्सेदार साबित करता है । इस तरह सही माने में 'ओ प्रतीक्षित' के गीत जिन्दगी से हिस्सेदारी के गीत है । वस्तुतः जिन्दगी की सही माने में हिस्सेदारी रचनात्मक धरातल पर करते समय कभी बड़बोलेपन का खतरा रहता है और कभी सिद्धान्तीकरण का । नयी कविता में ये दोनों खतरे अपनी कारगुजारी दिखाते हुए आईने से साफ नजर आते हैं । शान्ति सुमन के इन गीतों में या तो यथार्थ के फलक पर संवेदना का चटकीला रंग उभरता है अथवा संवेदनशील क्षणों मे यथार्थ चुभ गया है । इसलिए बड़बोलेपन की गुंजाइश नहीं है । इसी तरह संवेदनीयता सिद्धान्त-सृजन के लिए अवकाश नहीं देती ।

              ....बिम्बों के मामले में शान्ति सुमन जी ज्यादा संवेदनशील हैं । नवइयत की तलाश की अपेक्षा अनुुभूत्यात्मक कोलमलता पर उनकी दृष्टि अधिक रहती है । किसी रूप की समग्रता अथवा अनुभूति की गहराई को प्रकट करने में उनके बिम्ब खरे उतरते हैं ।

              ....शान्ति सुमन ने भावाकुल मनोदशा को लोक-संदर्भ से बिम्बों का चयन, रंगो के संयोजन और प्रतीकों की सृष्टि करके नियंत्रित किया है । उनकी यह संचेतना मुक्त क्षण के निजी प्रसंगों को लोक-संवेदना और सौन्दर्य के चौखटे में मढ़ देती है । शान्ति सुमन के लोक-संदर्भों में मैथिल परिवेश और सौन्दर्य-चेतना में रंगों की परख सर्वाधिक उल्लेखनीय है ।

                                                         - डाॅ॰ विश्वनाथ प्रसाद