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डाॅ॰ सुरेश गौतम

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डाॅ॰ सुरेश गौतम

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सम्पादकीय : 'शान्ति सुमन की गीत-रचना और दृष्टि'

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डाॅ॰ महाश्वेता चतुर्वेदी

शान्ति सुमन की गीत-रचना और दृष्टि

शान्ति सुमन की गीत-रचना और दृष्टि

शान्ति सुमन की गीत-रचना और दृष्टि

शान्ति सुमन की गीत-रचना और दृष्टि

शान्ति सुमन की गीत-रचना और दृष्टि

शान्ति सुमन की गीत-रचना और दृष्टि

शान्ति सुमन की गीत-रचना और दृष्टि

डाॅ॰ सुरेश गौतम

शान्ति सुमन का नाम लिये बिना नवगीत का इतिहास अधूरा... 

                शान्ति सुमन के गीतों में वैसे तत्व मौजूद हैं जिनके कारण उनके गीतों से नवगीत की अगली संभावना संकेतित होती है ।

              ......नवगीत की परम्परा में जनवादी स्वर की सुगबुगाहट लेकर शान्ति सुमन का सौमनस व्यक्तित्व उभरकर सामने आया है । नवगीत जिस अंगड़ाई की नजाकत लेकर आया था । उस समय शान्ति सुमन ने सुमन-सरीखे सुरभित गीत लिखे । कवयित्री का रचना-संसार प्रदर्शनप्रिय ओढ़ी हुई भावुकता के प्रति साग्रह नहीं है । इनकी रचनाशीलता में एक परिमार्जित और सुपठित प्रतिभा के दर्शन होते हैं । जो रचनाकार अध्ययन और साधना में लगा रहता है उसके लेखन में सर्वकालीन चेतना के अंकुर देर-सवेर जरूर जन्मते हैं । अध्ययन और साधना रचना-पीठिका पर शान्ति सुमन ने अपने व्यक्तित्व को निखारा है । इसमें दूर तक कोई शक नहीं कि शान्ति सुमन एक शिक्षित और सम्भ्रान्त व्यक्तित्व की धनी महिला साहित्यकार हैं ।......

             नवगीत के प्रारम्भिक स्वरों में कवयित्री का स्वर अपना एक अलग आभा-मंडल तैयार करता रहा है ।......

             ......अपने विरुद्ध जीने का विवशता-बोध और रचनाहीन स्थितियों के तकराव का द्वन्द्वात्मक संघर्ष जनबोध से सीधे जुड़ जाता है, जब घुटनशील चुनौतियाँ दैनंदिन तनावों को बारूदी शक्ल देने लगती हैं । कवयित्री के रचना-मानस में 'परछाईं टूटती', 'मौसम हुआ कबीर' की भूमि को खेत की तरह जोतती है । 'सुलगते पसीने' की गंध 'प्रतीक्षित' बीजों के इन्तजार में विद्रोही मुद्रा अपना लेती है । कवयित्री के तेवर बिल्कुल अलग रूप में सामने आते हैं । भाषा जीवन की तल्खियां और मरोड़ को तरख़ान का रंदा बनाकर घिसने लगती है, कामगार की फौलादी छेनी की भाँति काटने लगती है । रचयित्री की चाह श्रम को नमन करती है और सामाजिक वैषम्य के प्रतिकार के लिये कुशल दर्जी की नुकीली सुई-नोंक से समाज की बुनावट उधेड़कर बारीक सिलाई की आड़ में उस सुन्दरता का विरोध करती है जो जीवन को शोषित और असुन्दर बनाने के लिये घिनौने षड्यंत्र हैं ।.....अतः शान्ति सुमन का नाम लिये बिना नवगीत का इतिहास अधूरा और अपंग होगा । तमाम वैचारिक मतभेदों एवं प्रस्थान बिन्दुओं के बाद भी आलोचक ऐसा महसूस करता है कि नवगीत की पृष्ठभूमि एवं उसके विकास में शान्ति सुमन का भी महत्वपूर्ण योगदान है ।

                                                         - डाॅ॰ सुरेश गौतम