डॉ. अरविन्द कुमार
नागार्जुन के तालाब में कथरी ओढ़े तालमखाने चुनती मुड़े नाखूनों और गाँठदार ऊँगलीवाली शकुंतला नहीं
गीतों के बारे में यह माना जाता रहा है कि सिर्फ अपनी गेयता के कारण लोकप्रिय होते हैं, पर शांति सुमन ने गेयता के बीच गीतों की एक नयी भूमिका निर्धारित की है | इसे उनके संकलन 'मौसम हुआ कबीर' में बखूबी देखा जा सकता है | हालांकि बाद के संकलनों में गीतों का क्षेत्र-विस्तार भी होता है जहाँ प्रेम और संबंध जैसे शब्दों को एक नयी व्याख्या मिली है । इस प्रेम तथा संबंध की व्याख्या में शांति सुमन इतनी सहज हैं जैसे वे घर में बैठकर बतिया रही हों | पर सबसे बड़ी बात हैं कि वे भाबुक नहीं होतीं बल्कि उसे जीवन के वास्तविक संदर्भो से जोड़कर देखती हैं | अपना बचपन, गाँव में बिताये गए बचपन के दिन, रिश्तों कि अकुलाहट, माँ तथा पिता के साथ बिताये गये समय के दृश्य, खपरैलों पर लौकी की लतरें खोजती कोशी के कछेर की लड़की की आँखें या धार नहाती लड़की का साथ सब कुछ याद है उन्हें |....
शांति सुमन के यहाँ गाँव का मतलब सिर्फ प्रकृति या मौसम तक ही सीमित नहीं है, वह उनके भीतर रक्तबीज की तरह मौजूद है और यही रक्तबीज उन्हें निरंतर उस गाँव की सरहद पर ले जाता है | इसीलिए गाँव से निकलकर भी गाँव का यादों में बसे रहना या फिर गाँव को दिन-रात जीना गीतकार की एक प्रमुख विशेषता है |.....
शांति सुमन के यहाँ शब्द बोलते हैं चाहे वे बिम्बों के रूप में हो या रूपक के रुप में | साथ ही इनमें एक प्रकृति बोलती होती है और होती है उसकी हरियाली, उसका सौन्दर्य | यहाँ तक की रिश्तों की अकुलाहट में भी यह प्रकृति मौजूद है |......
अब तक शकुंतला मतलब रहा है कि रूप और शृंगार का एक युग्म, जहाँ कोमलवदना शकुन्तला दुष्यन्त कि प्रेयसी बनती है, पर यहाँ की शकुन्तला का रूप बिल्कुल अलग है - 'मुड़े हुए नाखून / ईख सी गाँठदार ऊँगली / टूटी बेंट जंग से लथपथ / खुरपी से पसली'....नागार्जुन के यहाँ भी तालमखाने के तालाब हैं, पर तालाब के पानी में धँसकर कथरी ओढ़े तालमखाने चुनती मुड़े नाखूनों और गाँठदार ऊँगलीवाली शकुन्तला नहीं है | आप सोच सकते हैं कि गीतकार के लिए इस रूपक को गढ़ना कितना कठिन रहा होगा | आप यह भी सोच सकते हैं कि शांति सुमन की संवेदना का स्तर क्या है ?
-डॉ. अरविन्द कुमार
प्रस्तुति - सुधांशु सिंह