आरसी प्रसाद सिंह

राजेन्द्र प्रसाद सिंह

उमाकान्त मालवीय

डाॅ॰ रेवतीरमण

डाॅ॰ सुरेश गौतम

सत्यनारायण

डाॅ॰ विश्वनाथ प्रसाद

डाॅ॰ वशिष्ठ अनूप

ओम प्रभाकर

देवेन्द्र कुमार

विश्वम्भर नाथ उपाध्याय

कुमार रवीन्द्र

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डाॅ॰ सुरेश गौतम

सत्यनारायण

भारतभूषण

डाॅ॰ सीता महतो

डाॅ॰ संजय पंकज

रत्नेस्वर झा

चन्द्रकान्त

डाॅ॰ विश्वनाथ प्रसाद

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देवेन्द्र कौर

शरदेन्दु कुमार

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नन्द भारद्वाज

डाॅ॰ इन्दु सिन्हा

डाॅ॰ कीर्ति प्रसाद

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अमित कुमार

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मधुकर अष्ठाना

सम्पादकीय : 'शान्ति सुमन की गीत-रचना और दृष्टि'

मधुकर सिंह

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मनीष रंजन

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अनूप अशेष

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डाॅ॰ माधुरी वर्मा

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डाॅ॰ चेतना वर्मा

डाॅ॰ लक्ष्मण प्रसाद

डाॅ॰ अशोक प्रियदर्शी

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शान्ति सुमन की गीत-रचना और दृष्टि

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मनीष रंजन

अज्ञेय जैसी काव्यात्मक भाषा

              एक सौ अंठानबे पृषठों में रचित 'जल झुका हिरन' एक उपन्यास से अधिक गीतिकाव्य ही लगता है। ऐसा उसकी भाषा के लावण्य के कारण लगता है। बहुत पहले अज्ञेय ने ऐसी काव्यात्मक भाषा का व्यवहार अपने उपन्यासों में किया था। कथ्य के कारण सही, पर भावात्मक सौन्दर्य के कारण उनके उपन्यास अधिक चर्चा में आये। भाषा की नाटकीयता अथवा उसके नाटकीय सौन्दर्य ने पाठकों को अधिक प्रभावित किया था। आज भी युवाओं में उनके उपन्यास अधिक लोकप्रिय हैं। 'जल झुका हिरन' उपन्यास का शीर्षक पहले तो एक ऐन्द्रीय बिम्ब ही प्रसतुत करता है। जल झुका हिरन का चित्र ही बहुत कुछ कह देने में समर्थ है।

                                                         - मनीष रंजन