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सम्पादकीय : 'शान्ति सुमन की गीत-रचना और दृष्टि'
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शान्ति सुमन की गीत-रचना और दृष्टि
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शान्ति सुमन की गीत-रचना और दृष्टि
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वीरेन्द्र आस्तिक
अनेक कथ्य-बिम्बों के प्रथम प्रयोक्ता
रेखांकन योग्य एक तथ्य यह भी है कि कवयित्री नवगीत की इतिहास में अनेक काव्य-बिम्बों के प्रथम प्रयोक्ता के रूप में प्रसिद्ध है। मेरी दृष्टि में परववर्ती गीतों की जमीन के लिये ऐसे गीत बीज-गीत की श्रेणी में आते हैं। सन् 1970 की समयावधि में इस रचनाकार की खोजपूर्ण वैचारिकता और कल्पनाशीलता बेमिशाल है-
'माँ की परछाई सी लगती / गोरी-दुबली शाम, पिता-सरीखे दिन के माथे / चूने लगता घाम' या 'जब कोई बच्ची वर्षा में नहाती है / घर की याद आती है।'
सुमन जी की रचना प्रक्रिया में एक दूसरा तथ्य भी गोचर होता है, जहाँ गीतधर्मिता अपनी सीमाओं का विस्तार करती है अर्थात् उसने बनी-बनाई सीमा (मानक, सिद्धांत आदि) का अतिक्रमण किया है।