शान्ति सुमन : व्यक्ति और कृति : दिनेश्वर प्रसाद सिंह 'दिनेश'
नवगीत और जनवादी गीत के बड़े रचनाकारों में एक डॉ॰ शान्ति सुमन का स्थान अपनी समकालीन गीत कवयित्रियों में सर्वोच्च है । नवगीत और जनवादी गीत लिखने में जैसी सफलता शान्ति सुमन को प्राप्त हुई वैसी और किसी गीत कवयित्री को नहीं । कवि सम्मेलनों के माध्यम से लगातार तीस वर्षों तक काव्य- मंचों पर धूम मचाने वाली सुकंठ गीतकार शांति सुमन पूरे देश में अपनी पहचान बना चुकी हैं। समकालीन हिन्दी गीत-काव्य को धार और ऊर्जा प्रदान करने वाले कवियों में उनका नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है ।
गीत-काव्य की अनन्य साधिका शांति सुमन की सरलता, सहजता और शालीनता उनके व्यक्तित्व के आभूषण हैं । इनका सीधा प्रभाव उनकी रचनाओं पर भी पड़ा है । यही कारण है कि इनकी रचनाओं की भाषा सीधी, सरल और आडम्बरहीन है । डॉ॰ शांति सुमन की रचनाओ में मिथिलांचल के गांवों की मिट्टी की सुगन्ध और उसकी पहचान देखते ही बनती है । इनके गीतों में ग्रामीण जीवन के दुःख-सुख, जीवन-शैली और जीवन-संघर्ष की स्पष्ट झलक मिलती है । आम आदमी की पीड़ा, व्यथा और संवेदना को कोमल शब्दों में गूंथने और उसे अपने गीतों में सजाने की अदभुत कला शांति सुमन में है ।
शांति सुमन की रचनाओं में एक ओर जहाँ नये-नये अनछुये बिम्ब, भावनाओं की ताजगी और कल्पनाओं की कोमलता दिखलाई देती है, वहीं दूसरी ओर समसामयिक समस्याओं पर गहरे चिंतन का प्रमाव भी स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है । सचमुच शांति सुमन लोक संवेदनाओं की शिखर कवयित्री हैं । शायद इसीलिए समीक्षकों ने इन्हें बिहार की महादेवी के रूप में महिमामंडित किया है । शांति सुमन जैसी धीर, गंभीर और मानवतावादी श्रेष्ठ कवयित्री का संक्षिप्तजीवन परिचय प्रस्तुत करते हुए मैं अपने आपको गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ।
जन्म :-
शान्ति सुमन के पहले गीत-संग्रह 'ओ प्रतीक्षित' के आधार पर उनकी जन्मतिथि 15 सितम्बर 1942 है । उसके बाद उनके जितने भी संग्रह आये सबमें उसी तिथि को छापने की विवशता रही । एक तो दूसरे संग्रह में उसको सुधारा नहीं गया और दूसरे गीतकार की ओर से उसका कोई संशोधन भी नहीं हुआ । पता नहीं 'ओ प्रतीक्षित' में कैसे 1944 को 1942 पढ़ लिया गया अथवा प्रूफ को सावधानी से देखा नहीं गया।
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