शिशुपाल सिंह 'नारसारा'
और एक पाठकीय प्रतिक्रिया : गाँव की मिट्टी की सोंधी गंध
'समय सुरभि अनन्त' में आपकी काव्यकृति 'सुखती नहीं वह नदी' की श्री प्रणव सिन्हा द्वारा लिखी समीक्षा पढ़कर अभिभूत हुआ। आपका जन्म किसान परिवार में हुआ, यह जानकर अपार प्रसन्नता हुई क्योंकि मैं स्वयं ग्रामीण परिवेश एवं किसान परिवार से हूँ।आपकी कविताओं में गाँव की मिट्टी की सोंधी गंध है, नदी है, पटेर और सरपट के हरे-हरे पत्ते हैं, जौ, गेहूँ और सरसों हैं। गाँव का सरपंच है, गोबर उठानेवाली 'घसगढ़नी' है। आपकी कविताओं में समाज में आहत होती अस्मिता है। संवेदनाओं से लबालब इन कविताओं मेेंसमय का सच है, जीवन का यथार्थ है। आपने दुख, कुन्ठा, घुटन और त्रास को वाणी दी है। समीक्षक ने ठीक ही लिखा है - 'अपने समय और समाज के अंधेरों को खुरचती हुई ये कविताएँ यथार्थ की पहचान और सघन संवेदनाओं की कविताएँ हैं।' जीवन के झंझावतों के बीच भावनावों की नमीको बचाकर रखनेवाले इस कविता-संग्रह के लिए आपको बधाई और साधुवाद।