सत्यनारायण
गीत के फलक पर शान्ति सुमन का आविर्भाव एक घटना
गीत के फलक पर शान्ति सुमन का आविर्भाव एक घटना है । जी हाँ, एक घटना । ऐसा कहकर मैं उन्हें महिमामंडित नहीं कर रहा । मेरे पास इसके ठोस और वाजिब आधार हैं ।...
मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि शान्ति सुमन की सृजनधर्मिता ने पैंतीस-चालीस वर्षों की यात्रा में गीत के धरातल पर अपना होना प्रमाणित किया है ।...
...शान्ति सुमन ने नवगीत से जनगीत तक का लम्बा सफर तय किया है । ऐसा क्यों हुआ, कैसे हुआ और क्या हुआ, इसे मैंने चुप रहकर ही सही, ध्यान से देखा-परखा है । वह दौर नवगीत के उन्मेष का दौर था । तब उमाकान्त मालवीय, ओम प्रभाकर, नईम, देवेन्द्र कुमार, रामचन्द्र चन्द्रभूषण जैसे कई गीत-कवि नवगीत की अस्मिता प्रतिष्ठित कर रहे थे । वाराणसी से शंभुनाथ सिंह, मुम्बई से वीरेन्द्र मिश्र और मुजफ्फरपुर से राजेन्द्र प्रसाद सिंह नवगीत के पक्ष में युद्ध स्तर पर जूझ रहे थे । कलकत्ता से चन्द्रदेव सिंह और महेन्द्र शंकर के सम्पादन में गीतों का प्रतिनिधि संकलन 'पाँच जोड़ बाँसुरी' फलक पर आ चुका था । तभी मुजफ्फरपुर की एक युवा कवयित्री ने अपने नवगीत-संग्रह के साथ अपना होना प्रमाणित किया । कवयित्री थीं, शान्ति सुमन और संग्रह था - 'ओ प्रतीक्षित' ।