शान्ति सुमन के गीत - डॉ॰ शिवकुमार मिश्र
मानवीय चिन्ता के एकात्म से उपजे गीत - डॉ॰ शिवकुमार मिश्र
निरंतर क्षरित और क्षत-विक्षत होती मनुष्यता और उसकी संभावनाओं को निहायत क्रूर और हिंस्र आज के समय के बरक्स, गीत के रचना-विधान में अक्षत बनाए और बचाए रखने के जीवंत उपक्रम का साक्ष्य हैं, शान्ति सुमन की रचनाधर्मिता की फलश्रुति उनके वे गीत, जो उनके 'धूप रंगे दिन' शीर्षक इस अद्यतन संकलन में, उनकी रचनाधर्मिता की सारी ऊष्मा और ऊर्जा को लिए हुए हमारे सामने हैं । गीत, शांति सुमन की रचनाधर्मिता का स्व-भाव है, जिसे उन्होंने काव्याभिव्यक्ति की दीगर तमाम भंगिमाओं के बीच-शिद्दत से जिया और बचाए रखा है । यही नहीं, समय के बदले और बदलते संदर्भों में अनुभव-संवेदनों की नई ऊष्मा और नया ताप भी उन्हें दिया है । इसी नाते उनका नाम प्रगतिशील आन्दोलन के साथ आरंभ हुई जनगीतों की परंपरा को, नई सदी की दहलीज तक लाने वाले जन गीतकारों में पहली और अगली कतार का नाम है। जनधर्मिता और कविता-धर्मिता का एकात्म हैं शान्ति सुमन के गीत, जो कविता को उसके वास्तविक आशय में जन-चरित्री बनाते हैं, उसे जन की आशाओं-आकांक्षाओं से बेहतर जिन्दगी के उसके स्वप्नों तथा संघर्षों से जोड़ते हैं। शान्ति सुमन के गीतों में उद्बोधन, आवेग और एक उमंग-तरंगित मन का उत्साह भर नहीं, समय की विद्रूपताओं से उनकी सीधी मुठभेड़ और युगीन यथार्थ का वह खरा बोध भी है, जिसे जन और उसके जीवन-संदभों के बीच से उन्होंने पाया और अर्जित किया है । गहरे और व्यापक जन-संघर्षों की धार से गुजरे ये गीत आज के विपर्यस्त समय की चपेट में आए साधारण जन के दुख-दाह, ताप-त्रास, उसकी बेबसी और लाचारी को ही शब्द और रूप नहीं देते, स्थितियों से संघर्ष करती उसकी जिजीविषा तथा जुझारू तेवरों को भी जनधर्मी पक्षधरता की पूरी ऊर्जा के साथ रूपायित करते हैं, जिन्हें जन और जन-सघर्षों की सहभागिता में शान्ति सुमन ने देखा और जिया है। उनके गीतों में नर-जीवन ही नहीं, नरेतर वाह्य प्रकृति भी नर जीवन की सहभागिता में अपनी जनधर्मी भंगिमाओं की समूची सुषमा के साथ चित्रित हुई है। उनके ये गीत हमारे समय का आईना भी हैं, और उसमें एक सार्थक हस्तक्षेप भी। इन गीतों से होकर गुजरना जनधर्मी अनुभव-संवेदनों की एक बहुरंगी, बहुआयामी, बेहद समृद्ध दुनिया से होकर गुजरना है, साधारण मेँ असाधारणता के, हाशिए की जिन्दगी जीते हुए छोटे लोगों के जीवन-संदर्भो में महाकाव्यों के वृत्तान्त पढ़ना है | स्वानुभूति, सर्जनात्मक कल्पना तथा गहरी मानवीय चिन्ता के एकात्म से उपजे ये गीत अपने कथ्य में जितने पारदर्शी हैं, उसके निहितार्थों में उतने ही सारगर्भित भी। मुक्तिबोध ने कविता को जन-चरित्री के रूप में परिभाषित किया है । शांति सुमन के ये गीत मुक्तिबोध की इस उक्ति का रचनात्मक भाष्य हैं ।